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Justice for women vs society

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महिलाओं और बच्चियों पर बढ़ते अपराध वर्तमान अपराध की स्थिति इस बात की तरफ इशारा करती है कि समाज मे कैसा भी अपराध हो उसे रोकने की हिम्म्मत इस वर्तमान समाज मे नही। अखबार, न्यूज चैनल प्रतिदिन ऐसे सैकड़ो खबरे दिखाती है लेकिन हम सभी उसे देख कर घर मे बैठकर दुख से यह कह कर रह जाते हैं कि अब महिलाओं और बच्चियों का बाहर जाना सुरक्षित नही। उसके बाद चैनल बदल देते हैं। लेकिन मेरा एक सवाल है। बच्चियों और महिलओं को असुरक्षित किया किसने? इसमे भी कंही बाहरी तत्वों का हाथ तो नही। जब भी किसी स्त्री के साथ अपराध होता है तो अपराध करने वाले 90% उसके जानकर या उस समाज के हिस्से है। इसका मतलब अपराध की यह विचार धारा इस समाज की की देन है कंही न कंही। मोहल्ले में आते जाते स्त्रियों पर तंज कसते लड़के हर जगह मिल जाएंगे। लेकिन उन्हें रोकते हुए एक व्यक्ति को नही देखा। हमे महिलाओं से कैसे व्यवहार करना चाहिए इसकी जानकारी न तो विद्यालय और न ही घर पर मिल पा रही है। बस जो हैं वो समाज और टीवी से सिख रहे हैं। स्त्रियों को छेड़ने में मर्दानगी झलकती है लेकिन वही मर्दानगी इसे रोकने के वक्त गायब हो जाती है। लड़के रोड पर चलते...