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Showing posts from May, 2017

Aaj ke yuva

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आज के युवा भगत सिंह जो युवाओ के आदर्श है . (सिर्फ खयाली , उनके कर्मों ओर जीवन से बहुत कम लोगों का सरोकार दिखता है.) भगत सिंह के एक लेख "युवा" से- युवा अवस्था मानव जीवन का वसंत काल है। उसे पाकर मनुष्य मतवाला हो जाता है। हजारो बोतल का नशा छा जाता है। विधाता की दी हुए सारी शक्तियाँ एक साथ मिलकर फुट पड़ती है। लेख के अनुसार एक युवा के पास खुद के कुछ नियम , कुछ आदर्श , और सबसे बड़ी बात एक स्वतंत्र नजरिया होना चाइए। यंहा स्वतन्त्रता का मतलब है-  अपने कर्मो के द्वारा दूसरे की स्वतंत्रता को बाधित ना होने देना । वर्तमान समय मे युवा पीढ़ी भगत सिंह को अपना आदर्श तो समझता है लेकिन उनके जैसी कुर्बानी की बात सोचना भी युवा के लिए नामुमकिन हैं। क्यों कि ये सामाजिक आज़ादी , भरस्टाचार, गरीबी , लाचारी, सामाजिक कुरूतियों जैसे बहुत से समस्याओं से निजाद चाहते हैं, पर इनके पास ना समय हैं और ना ही किसी प्रकार की कोई प्रेरणा। ये सिर्फ आदर्शवादी बाते कर के अपने मन को हल्का कर लेते हैं। समाज मे जाकर कार्य करने की बात तो दूर , हम अपने जीवन मे भी किसी प्रकार की स्वतंत्रता को स्थान नही देते है।किसी भ...

Ek aawaj

💐🇮🇳💐जय भारत💐🇮🇳💐🙏🙏🙏साथियों🙏🙏🙏💐🇮🇳💐       "ये मेंहदी...ये चूड़ियाँ"   --------------------------------------- सखियों,समाज हमें...निराधार... खोखली...दमघोंटू...दमतोड़ती परंपराओं के नाम पर ...हम नारियों को अनगिनत बंधनों में बाँध दिया  .... उन बंधनों में मेंहदी व चूड़ियाँ भी है । समाज के ठेकेदारों ने अपना व्यापार चलाने की ख़ातिर हम नारियों को  मेंहदी व चूड़ियों में उलझा दिया...और हम नारियाँ भी अपनें हाथों की कोमलता तथा मेंहदी व चूड़ियों से हाथों के श्रृंगार में लग गयें...और कोमलता की उहापोह में धीरे-धीरे भूलते गये...हाथों की कर्मठता को...अपनी बाज़ुओं की ताक़त को...निरीह ....लाचार बनकर अपनी स्वयं की शक्ति ही भूला बैठे...अपना रक्षक स्वयं को माननें के बजाय ...किसी और को मान बैठे...और फिर क्या...दोहन शुरू...आपकी मेंहदी व चूड़ियां मूक -बधिर ही बनी रहीं.. रक्षा ही नही कर पायीं किसी का.. .। सखियों,अब वक़्त आ गया है...इन मेंहदी व चूड़ियों को तिलांजलि देनें का...उन्हें दरकिनार करनें का ....और अगर आपको श्रृंगार करना ही है तो,मानवीय गुणों से स्वयं का श्रृंगा...

Dowry. Why?

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💐🇮🇳💐जय भारत💐🇮🇳💐🙏🙏🙏साथियों🙏🙏🙏💐🇮🇳💐            " दहेज़ क्यूँ."..??? -------------------------------------------       (बेटा, तू भिखारी है...              ...... या....               आतंकवादी...) माफ़ कीजियेगा...आज जो कटाक्ष करने हम जा रहें हैं...उससे आप सभी को अपने स्तर का पता चल जाएगा...कि आप सबमें समाज का बेहतरी करनें का दम है...या फिर समाज का दमन करने  की मानसिक बीमारी...। बीमार हो चुके हैं आप सभी...इसीलिये आपकी बिमारी से आप सबको अवगत कराने आयी हूँ  । वक़्त रहते चेत जाईये...इलाज़ मुहैया कर लीजिए...अन्यथा सम्पूर्ण मानवजाति का विनाश तो निश्चित है...वो भी आपके स्वयं के अपनें हाथों...। दहेज़ के वास्ते सभी ज़िम्मेदार हैं...कोई लेकर ज़िम्मेदार है ;तो कोई देकर ज़िम्मेदार है...परन्तु हर हाल में बेटियों पर ही करते वार हैं । पूछती हूँ मैं...क्या हर एक बेटे व बेटे के घर वाले नपुंसक हो गए हैं...जो बेटियों के घर वालों से खुद के बेटे का मोलभाव लगानें लग ...