ANDHWISWAS
III नमो भारत III जय भारत III
''अन्धविश्वास''
अन्धविश्वास भारत की प्रमुख समस्याओं में से एक है। जिनकी जड़े वैदिक समय से ही भारत भूमि में विराजमान है दरसल अन्धविश्वास हमारे देश की संस्कृति में कभी था ही नहीं। हमारे देश की संस्कृति श्रमण संस्कृति के नाम से जानी जाती थी, जिसमे लोग श्रम पर , विज्ञानं पर, तर्क पर, विश्वास करते थे। आर्यों के आगमन के बाद वैदिक संस्कृति विकसित हुई जिसमे अन्धविश्वास को प्रमुखता से जगह दी गई ताकि विशाल आबादी को गुलाम बनाया जा सके। इसके लिए भाग्य और भगवान को इसके केंद्र में रखा गया। व्यक्ति को मानसिक रूप से गुलाम बनने के लिए उसके मस्तिष्क में अन्धविश्वास भरा जाए। अन्धविश्वास रूपी गाड़ी को चलाने के लिए भाग्य भगवान , डायन , भूत , पिचास , प्रेत , जादू - टोना, व्रत , पूजा - पाठ , हवन , पुर्नजन्म इत्यादि का सहारा लिया जाता है। देश की बड़ी आबादी आज इस बीमारी से ग्रसित थे। अफ़सोस की बात तो यह है की इस रेस में पड़े लिखें इंजीनियर , डॉ. इत्यादि भी शामिल है।
देश की प्रगति व् विकास में अन्धविश्वास भुत बड़ा बाधक है। समाज में अनेक प्रकार के अन्धविश्वास को देखा जा सकता है। कुछ तो अपनी यात्रा इसलिए स्थगित कर देते है कि उनका रास्ता बिल्ली ने काट दिया है। तांत्रिक के कहने पर लोग अपने बच्चों की बलि दे देते है या दूसरों का जान ले लेते है। इस देश में बच्चा पैदा होते है तो भगवान को ढूढ़ने लगता है। वह कभी यह नहीं सोचता की वह किस लिए इस दुनिया में आया है? इस देश में भगवान के दर्शन करने वाले लोग की भरमार है।
अनगिनत संस्थाएं है जो भगवान से सीधे मिलवाने का काम करती है, इसमें साधु संतो समाज , तांत्रिको का समाज, पाखंडी बाबाओं का समाज , पाखंडी साधु का लोगो को मानसिक शारिरीक, सौद्यिक रूहानी देने का काम , आरएसएस हिन्दू महा - सभा , बजरंग दल , राम सेना , शिव सेना , बानर सेना , दुर्गा वाहिनी सेना, गौ रक्षक दल इत्यादि अनगिनत संस्थाएं आज देश के विनाश के कारण है। बिमारियों की शोध क्षमता को कम किया जा रहा है, और उन्हें समझाया जाता है की तुम कितना भी कर लोगे वही होगा जो राम रूचि राखा।
जो भाग्य में लिखा होगा वही होगा। इसलिए देश में लाखो डॉ. और इंजीनियर प्रत्येक वर्ष पैदा हो रहे है, पर खोज विदेशों में होता है, देश के सभी पाखंडी बाबा अन्धविश्वास को फ़ैलाने में लगे है। चाहे राधा स्वामी हो , नित्यानंद हो , साक्षी महाराज हो , चाहे रविशंकर हो। सभी लोग भगवान से मिलाने सभी लोग भगवान से मिलाने का ठेका थोक भाव में ले रखा है। इस देश में अन्धविश्वास का इतिहास पुराना रहा है। एक ओर व्रत वैदिक संस्कृति पाखंडवाद को बढ़ावा देती आरही है। वही दूसरी ओर तथागत बुद्ध ने इन पाखण्डो को नाकाम किया। इनके अनुसार दुनिया में कुछ भी बिना कारण कुछ भी नहीं होता। हर क्रिया के पीछे कारण होता है। भगवान को पाने या खोजने के स्थान पर उन्होंने प्रकृति को समझने एवं अपने कर्म पर जोर देने को कहा जो पाखंडवाद के विपरीत है। इस देश में हर ३० वर्ष के बाद एक नया देवता पैदा हो जाता है। हर रोज एक नया चमत्कार होता है। हर रोज एक पादुका मिल जाता है तो कही अश्वस्थामा मिल जाता है। कभी गणेश भगवान दूध पीने लगते है। तो कभी चुड़ैल दरवाजे पर आकर प्याज कट कर जाती है।
यह कैसा देश है ? जहां लोग प्रकृति को जानना नहीं चाहते। प्रकृति नियमों को समझना नहीं चाहते। अपने कर्त्तव्यों को जानना नहीं चाहते। केवल चमत्कार से सब कुछ पाना चाहते है। इसलिए हमारा प्रयास है अन्धविश्वास मुक्त भारत। तभी देश का विकास होगा और
और विज्ञानं को बढ़ावा मिलेगा। यदि हनुमान का पूछ होता है तो सभी मानवों में में क्यों नहीं नहीं ? यदि दुर्गा के १० हाथ है जिसे देवी कहा जाता है तो ३ हाथ किसी लड़की को राक्षस क्यों ? सभी देवता भारत में ही क्यों अवतरित हुए ? इस देश में हर एक राज्य का एक देवता है जैसे बंगाल की दुर्गा, महाराष्ट्र के गणेश, बिहार की सरस्वती आदि। हर जाति का एक देवता है जैसे वाल्मीकि का महर्षि वाल्मीकि , यादवों का देवता कृष्ण इत्यादि।
अतः हम अन्धविश्वास मुक्त भारत का निर्माण का सपना देख रहे है। जो न तो आस्तिक हो नहीं ही नास्तिक, हो सिर्फ वास्तविक।
सम्राट प्रियदर्शी युथ फेडरेशन ऑफ़ इंडिया
विशिस्ट भारतीय युवा समाज सेवी संगठन
''अन्धविश्वास''
अन्धविश्वास भारत की प्रमुख समस्याओं में से एक है। जिनकी जड़े वैदिक समय से ही भारत भूमि में विराजमान है दरसल अन्धविश्वास हमारे देश की संस्कृति में कभी था ही नहीं। हमारे देश की संस्कृति श्रमण संस्कृति के नाम से जानी जाती थी, जिसमे लोग श्रम पर , विज्ञानं पर, तर्क पर, विश्वास करते थे। आर्यों के आगमन के बाद वैदिक संस्कृति विकसित हुई जिसमे अन्धविश्वास को प्रमुखता से जगह दी गई ताकि विशाल आबादी को गुलाम बनाया जा सके। इसके लिए भाग्य और भगवान को इसके केंद्र में रखा गया। व्यक्ति को मानसिक रूप से गुलाम बनने के लिए उसके मस्तिष्क में अन्धविश्वास भरा जाए। अन्धविश्वास रूपी गाड़ी को चलाने के लिए भाग्य भगवान , डायन , भूत , पिचास , प्रेत , जादू - टोना, व्रत , पूजा - पाठ , हवन , पुर्नजन्म इत्यादि का सहारा लिया जाता है। देश की बड़ी आबादी आज इस बीमारी से ग्रसित थे। अफ़सोस की बात तो यह है की इस रेस में पड़े लिखें इंजीनियर , डॉ. इत्यादि भी शामिल है।
देश की प्रगति व् विकास में अन्धविश्वास भुत बड़ा बाधक है। समाज में अनेक प्रकार के अन्धविश्वास को देखा जा सकता है। कुछ तो अपनी यात्रा इसलिए स्थगित कर देते है कि उनका रास्ता बिल्ली ने काट दिया है। तांत्रिक के कहने पर लोग अपने बच्चों की बलि दे देते है या दूसरों का जान ले लेते है। इस देश में बच्चा पैदा होते है तो भगवान को ढूढ़ने लगता है। वह कभी यह नहीं सोचता की वह किस लिए इस दुनिया में आया है? इस देश में भगवान के दर्शन करने वाले लोग की भरमार है।
अनगिनत संस्थाएं है जो भगवान से सीधे मिलवाने का काम करती है, इसमें साधु संतो समाज , तांत्रिको का समाज, पाखंडी बाबाओं का समाज , पाखंडी साधु का लोगो को मानसिक शारिरीक, सौद्यिक रूहानी देने का काम , आरएसएस हिन्दू महा - सभा , बजरंग दल , राम सेना , शिव सेना , बानर सेना , दुर्गा वाहिनी सेना, गौ रक्षक दल इत्यादि अनगिनत संस्थाएं आज देश के विनाश के कारण है। बिमारियों की शोध क्षमता को कम किया जा रहा है, और उन्हें समझाया जाता है की तुम कितना भी कर लोगे वही होगा जो राम रूचि राखा।
जो भाग्य में लिखा होगा वही होगा। इसलिए देश में लाखो डॉ. और इंजीनियर प्रत्येक वर्ष पैदा हो रहे है, पर खोज विदेशों में होता है, देश के सभी पाखंडी बाबा अन्धविश्वास को फ़ैलाने में लगे है। चाहे राधा स्वामी हो , नित्यानंद हो , साक्षी महाराज हो , चाहे रविशंकर हो। सभी लोग भगवान से मिलाने सभी लोग भगवान से मिलाने का ठेका थोक भाव में ले रखा है। इस देश में अन्धविश्वास का इतिहास पुराना रहा है। एक ओर व्रत वैदिक संस्कृति पाखंडवाद को बढ़ावा देती आरही है। वही दूसरी ओर तथागत बुद्ध ने इन पाखण्डो को नाकाम किया। इनके अनुसार दुनिया में कुछ भी बिना कारण कुछ भी नहीं होता। हर क्रिया के पीछे कारण होता है। भगवान को पाने या खोजने के स्थान पर उन्होंने प्रकृति को समझने एवं अपने कर्म पर जोर देने को कहा जो पाखंडवाद के विपरीत है। इस देश में हर ३० वर्ष के बाद एक नया देवता पैदा हो जाता है। हर रोज एक नया चमत्कार होता है। हर रोज एक पादुका मिल जाता है तो कही अश्वस्थामा मिल जाता है। कभी गणेश भगवान दूध पीने लगते है। तो कभी चुड़ैल दरवाजे पर आकर प्याज कट कर जाती है।
यह कैसा देश है ? जहां लोग प्रकृति को जानना नहीं चाहते। प्रकृति नियमों को समझना नहीं चाहते। अपने कर्त्तव्यों को जानना नहीं चाहते। केवल चमत्कार से सब कुछ पाना चाहते है। इसलिए हमारा प्रयास है अन्धविश्वास मुक्त भारत। तभी देश का विकास होगा और
और विज्ञानं को बढ़ावा मिलेगा। यदि हनुमान का पूछ होता है तो सभी मानवों में में क्यों नहीं नहीं ? यदि दुर्गा के १० हाथ है जिसे देवी कहा जाता है तो ३ हाथ किसी लड़की को राक्षस क्यों ? सभी देवता भारत में ही क्यों अवतरित हुए ? इस देश में हर एक राज्य का एक देवता है जैसे बंगाल की दुर्गा, महाराष्ट्र के गणेश, बिहार की सरस्वती आदि। हर जाति का एक देवता है जैसे वाल्मीकि का महर्षि वाल्मीकि , यादवों का देवता कृष्ण इत्यादि।
अतः हम अन्धविश्वास मुक्त भारत का निर्माण का सपना देख रहे है। जो न तो आस्तिक हो नहीं ही नास्तिक, हो सिर्फ वास्तविक।
सम्राट प्रियदर्शी युथ फेडरेशन ऑफ़ इंडिया
विशिस्ट भारतीय युवा समाज सेवी संगठन
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