Truth behind saving the nature.
"पर्यावरण सरंक्षण का सच" जब भी प्रदूषण , ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण को हो रहे नुकसान की बात आती है, तो अमेरिका जैसे अमीर और विकसीत देश भारत जैसे गरीब और विकासशील देशों के खिलाफ गोलबंद हो जाते है और दबंगई के साथ इन पर ही सारा दोष मढ़ देते है। कुछ ऐसा ही हाल अपने देश के अंदर भी है। स्वयं को ज्यादा बुद्धिमान और सजग -सचेत समझने वाला अमीर और साधन सम्पन वर्ग गन्दगी और प्रदूषण का ठीकरा बहुत चालाकी से गरीबों पर फोड़ देता है। ★अगर सोसाइटी का निष्पक्ष विश्लेषण करें ,तो गरीबों पर लगाये जाने वाले ये सारे आरोप निराधार साबित हो जायेगे। जहां घरों से निकलने वाले कूड़े कचरे का सवाल है तो यह नगरों महानगरों में ज्यादा बड़ी समस्या है। जो घर जितना अधिक सम्पन्न हैं वहाँ खाने पीने के पैकेज, डिब्बाबंद ओर बोतलबंद समान का इस्तेमाल अमूमन उतना अधिक है। ◆जाहिर है , किसी तरह दो जून की रोटी जुटा पाने वाले गरीबों का इस प्रकार के कचरे पैदा करने में कोई योगदान नहीं है।उल्टे , वे इस कचरे से भी अपने काम लायक चीजे चुन बीनकर ले जाते है। इसके अलावा , कूड़ा बीनने वाले गरीब चन्द रुपयों को कमाने के लिए ही सही...