कर्मकांडो के नाम पर अनगिनत मृत्यु


कर्मकांडो के नाम पर अनगिनत मृत्यु
|||नमो भारत|||

दोस्तो हर वर्ष के भांति इस वर्ष भी लोगो ने अंधभक्ति से परिपूर्ण कई कर्मकांड किये और करते रहेंगे। चाहे वह दुर्गापूजा हो या मुहर्रम या कोई और दूसरा कार्यक्रम। 
मेरा ध्यान कर्मकांड पर नही है मेरा मकसद है कि आपका ध्यान इन कर्मकांड के नाम पर हर साल लोगो की मृत्यु पर केंद्रित करना है। हर साल हजारों की सख्या में लोग इन कर्मकांडो के समय हुए घटनाओं में मरते हैं। कई लोग बहुत बुरी तरह घायल होते हैं। कई जगह पर मारपीट, झगड़े, ढंगे, खूनखराबा यह सब भी होता है उसमें भी कई लोग मरते और घायल होते हैं। लोग खुशियो की जगह मातम को घर मे बुला लाते हैं। हमारी जनता ही इन कर्मकांडो में इस तरह लिप्त हैं कि उन्हें खुद अपनी सुरक्षा की चिंता नही होती। 
क्या इन अंधविश्वासी कर्मकांडो को करते समय हुए मृत्यु हुए लोगो को स्वर्ग या जन्नत मिलती हैं। क्या वजह है ? 
लोग इस तरह लिप्त हैं कि उन्हें सही गलत का फर्क तक नजर नही आता। धर्म के नाम पर लोग मरने मारने पर उतारू रहते हैं। किसने बनाया ऐसे नियम धर्मो में । ऐसे कर्म कांडों को करने के लिए बाध्य किया। 
 जनता की सुरक्षा की ज़िम्मेबारी किसकी है। हर चीज के लिए सरकार को गलत नही धराया जा सकता। कुछ लोगो का कहना होता है कि राजनैतिक पार्टियां धर्म और जाति का उपयोग करके जनता के साथ खेलती है। गलत है जनता खुद धर्म और जाति के नाम पर बेबकुफ़ बनना चाहती है तो कोई फायदा न उठाएं ऐसा कैसे हो सकता हैं।
इन कर्मकाण्ड के वक्त घटनाओं पर कई बार सरकार को भी गलत धराया जाता है। मूर्ति विसर्जन के वक्त अगर कोई डूब जाता है तो गलती किसकी है? मुहर्रम के समय हुए घायल लोग अगले दिन अस्पताल में दिखते है । किसकी गलती है। रथ यात्रा के समय रथ के पहिये के नीचे आने वाले लोग अपने को सौभाग्यशाली समझते हैं। यह कैसी सोच है। वर्तमान का न सोचकर लोग म्रत्यु के बाद का सोचते हैं। म्रत्यु के बाद क्या होता है इसका किसी के पास सबूत नही। 
पूजा पाठ के कर्मकांड के नाम मूर्ति स्थापना ओर विसर्जन होना । इसमे मूर्ति का विसर्जन के नाम पर नदियों और तालाबो को विषैला और दूषित करना । फिर वही पानी का उपयोग लाने पर बीमार होने पर सरकार को कोसना की सरकार पानी फिल्टर करके नही भेजती। या फिर उस पानी से महामारी फैलती है तो उस पर भी सरकार को कोसना की सरकार ने इलाज की व्यवस्था नही की।

आखिर कब तक हम अपनी गलती का जिम्मेबार दुसरो को बनाते रहेंगे।
इतिहास के मुताबिक मूर्ति स्थापना राजा महाराजा करवाते थे और मूर्ति स्थापना की परम्परा कुछ 500 साल पुरानी है।  बड़े स्तर पर एक ही जगह पर स्थापना करवाते थे । लेकिन अब हम गली, मोहल्ले, घर सब जगह मूर्ति स्थापना होती है। अब नदियों में मूर्तियों की संख्या बहुत बढ़ गयी है। हमने परम्पराओं के नाम पर नदियों ,जंगलो, जानवरो को भी नही छोड़ा। परम्परा के नाम पर धन का नुकसान , जान माल का नुकसान। क्यो?
आखिर हम कब सुधरेंगे। हमने जंगलो और नदियों को बर्बाद कर दिया। लेकिन हम सुधरने को तैयार नही। यँहा केवल परम्पराओं की गलती नही है इसमें परम्पराओं के अंदर झुपे स्वार्थ की है हम स्वार्थी होगये है इस लिए हम इन परम्पराओं को बदलना नही चाहते। 
कर्मकांडो के नाम पर हमने प्रदूषण फैलाने की कोई कमी नही छोड़ी चाहे वह ध्वनि प्रदूषण हो या वायु प्रदूषण या जल प्रदूषण।
इन सब का समाधान क्या है? कब तक सरकारे सिर्फ नियम बनाती रहेगी। जनता अमल ही नही करती।
सूर्यमित भारतीय
बिहार राज्य इकाई
सम्राट प्रियदर्शी युथ फॉउंडेशन ऑफ इंडिया

Comments

Popular posts from this blog

Birsa Munda

bharat ke mahapurush - buddha

"Nationality" Its not a hindu nation.