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Showing posts from 2017

discrimination- भेदभाव

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*।।। नमो भारत ।।।* एक विचार- *एक डर भेदभाव का , नफरत का*  दोस्तो ,हम सभी मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे सभी को किसी न किसी से डर जरूर लगता है।  वैसे से ही मुझे भी डर लगता है। डर लगता है लेकिन किस्से इस प्रश्न का उत्तर कुछ को हैरान कर सकता है।  उत्तर है - धर्म। धर्म से डर क्यो? अब हम इस बात पर आते हैं।  धर्म अच्छा है या बुरा इसके प्रति मेरी जिज्ञासा शांत हो चुकी है। मैं वर्तमान को देखते हुए यह बात अनुभव की है आज के युवावर्ग जो कि भारत मे बहुत है उनमें से बहुत से ऐसे है जो तर्कहीन जिंदगी जी रहे हैं। धर्म के कर्मकांडो को फॉलो कर रहे हैं और साथ मे पक्षपाती भी बनरहे है।  सोशल मीडिया पर दिन प्रति दिन हिन्दू इस्लाम पर और इस्लाम हिन्दू पर कटाक्ष करते हुए मिल जाएंगे। कभी हिन्दू ने मुस्लिम को पीटने की तो कभी मुस्लिम ने हिन्दू को पीटा की न्यूज़ सोशल मीडिया पर आती है साथ मे यह भी लिखा होता है कि इसे ज्यादा से ज्यादा फैलाये। जिससे लोगो का साथ हो। धार्मिक कार्यकर्मों के करते समय दूसरे धर्म के लोग ने अपद्र्व किया। मारपीट हो जाती है। इसकी न्यूज़ सोशल मीडिया पर शेयर...

कर्मकांडो के नाम पर अनगिनत मृत्यु

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कर्मकांडो के नाम पर अनगिनत मृत्यु |||नमो भारत||| दोस्तो हर वर्ष के भांति इस वर्ष भी लोगो ने अंधभक्ति से परिपूर्ण कई कर्मकांड किये और करते रहेंगे। चाहे वह दुर्गापूजा हो या मुहर्रम या कोई और दूसरा कार्यक्रम।  मेरा ध्यान कर्मकांड पर नही है मेरा मकसद है कि आपका ध्यान इन कर्मकांड के नाम पर हर साल लोगो की मृत्यु पर केंद्रित करना है। हर साल हजारों की सख्या में लोग इन कर्मकांडो के समय हुए घटनाओं में मरते हैं। कई लोग बहुत बुरी तरह घायल होते हैं। कई जगह पर मारपीट, झगड़े, ढंगे, खूनखराबा यह सब भी होता है उसमें भी कई लोग मरते और घायल होते हैं। लोग खुशियो की जगह मातम को घर मे बुला लाते हैं। हमारी जनता ही इन कर्मकांडो में इस तरह लिप्त हैं कि उन्हें खुद अपनी सुरक्षा की चिंता नही होती।  क्या इन अंधविश्वासी कर्मकांडो को करते समय हुए मृत्यु हुए लोगो को स्वर्ग या जन्नत मिलती हैं। क्या वजह है ?  लोग इस तरह लिप्त हैं कि उन्हें सही गलत का फर्क तक नजर नही आता। धर्म के नाम पर लोग मरने मारने पर उतारू रहते हैं। किसने बनाया ऐसे नियम धर्मो में । ऐसे कर्म कांडों को करने के लिए बाध्य किया।...

Yuva ka dar

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।।। नमो भारत।।। बच्चो को मार खाने का डर युवा को भविष्य का डर बुजुर्गों को स्वर्ग का डर राजनेता को उसके सरकार जाने का डर अब तो कईयों ने तो अपने डर को कर्तव्यों का नाम भी दे डाला है। एक व्यक्ति के क्या कर्त्तव्य होते हैं? पढ़ो लिखो, कमाओ, खाओ, बच्चो को पढ़ाओ, बुढ़ापे में कीर्तन भजन करके अपने लिए स्वर्ग में सीट रिज़र्व करो और अंत । क्या यही है एक व्यक्ति के कर्तव्य । अधिकार की बात आती है तो लोग अपने अधिकार के लिए अपनो से भी लड़ जाते हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम आने वाले पीढ़ी को एक बेहतर समाज और देश दे लेकिन हम क्या कर रहे हैं । हम सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं। हमारा पैसा , हमारी जमीन , हमारा घर, हमारी जाति, हमारे धर्म इन सभी पर हमें गर्व होता है। लेकिन जब बात देश की आती है तो लोग देश पर गर्व तो करते हैं लेकिन सिर्फ तबतक जबतक उनका धर्म और जाति परे है। लोगो के मुताबिक वो देश के अपनी जाति और धर्म को नही छोड़ सकते हैं। धर्म को छोड़ना पाप है लेकिन देश के प्रति अपने कर्तव्य पूर्ण न करना गलत नही। परिवार में कुछ सही नही हो रहा तो बहुत से बाबाओ , धर्मो के पास अनेको समाधान है । किसान खेत...

Truth behind saving the nature.

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"पर्यावरण सरंक्षण का सच" जब भी प्रदूषण , ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण को हो रहे नुकसान की बात आती है, तो अमेरिका जैसे अमीर और विकसीत देश भारत जैसे गरीब और विकासशील देशों के खिलाफ गोलबंद हो जाते है और दबंगई के साथ इन पर ही सारा दोष मढ़ देते है। कुछ ऐसा ही हाल अपने देश के अंदर भी है। स्वयं को ज्यादा बुद्धिमान और सजग -सचेत समझने वाला अमीर और साधन सम्पन वर्ग गन्दगी और प्रदूषण का ठीकरा बहुत चालाकी से गरीबों पर फोड़ देता है। ★अगर सोसाइटी का निष्पक्ष विश्लेषण करें ,तो गरीबों पर लगाये जाने वाले ये सारे आरोप निराधार साबित हो जायेगे। जहां घरों से निकलने वाले कूड़े कचरे का सवाल है तो यह नगरों महानगरों में ज्यादा बड़ी समस्या है। जो घर जितना अधिक सम्पन्न हैं वहाँ खाने पीने के पैकेज, डिब्बाबंद ओर बोतलबंद समान का इस्तेमाल अमूमन उतना अधिक है। ◆जाहिर है , किसी तरह दो जून की रोटी जुटा पाने वाले गरीबों का इस प्रकार के कचरे पैदा करने में कोई योगदान नहीं है।उल्टे , वे इस कचरे से भी अपने काम लायक चीजे चुन बीनकर ले जाते है। इसके अलावा , कूड़ा बीनने वाले गरीब चन्द रुपयों को कमाने के लिए ही सही...

which type of education are we need in our india?

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कैसी शिक्षा हमे चाइए? आज की समय मे शिक्षा को मात्र नौकरी प्राप्त करने का संसाधन समझ जाता है । तो हमे अपनी शिक्षा प्रणाली को बदलना होगा। तथागत गौतम बुद्ध ने कहा है कि किसी भी बात तो सच तभी मनना जब वह बात आपके तर्क विवेक की कसौटी पर खरी उतरे। अन्य व्यक्तियों के सम्मुख उसका औचित्य प्रमाणित कर सको और वह मानव के कल्याण के लिए हो, अन्यथा की स्थिति में किसी भी बात को सीधे अमान्य कर देना। उसे किसी भी पंरपरा, सिद्धांत , मूल्य , भाग्य, भगवान, धर्मग्रन्थ, किताब, सभ्यता , संस्कृति को नि ःसंकोच भाव से किंचित मात्र भी देर किए बिना सीधे त्याग देना। हमे शिक्षा और नैतिकता को भी इसी तरह से विस्तृत दायरे में समझने की आवश्यकता है। *नैतिकता का सही अर्थ - किसी इंसान को इंसान ही समझा जाए उससे न कम और न ज्यादा।* इसी तरह के विवेक समस्त प्रगतिशील मूल्य पूरक शिक्षण प्रशिक्षण हमारे बच्चो को प्रदान किया जाए तभी आसानी से सम्पूर्ण व समावेशी प्रगतिशील *भारतीय समाज* का निर्माण किया जा सकेगा। बच्चो में उनकी तर्कबुद्धि को विकसित करने में उत्क्रष्ट सहायक की भूमिका का निर्वहन करना एक अच्छे माता पिता एवम शिक्षक ...

badlav

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# बदलाव दोस्तो आज एक सवाल उठा है मन मे कि जब भी कोई व्यक्ति किसी भी वर्तमान सरकार की मनसा पर सवाल खड़ा करता है तो दूसरे लोग उससे यही सवाल करते है कि पिछली सरकार दूसरे पार्टी की थी तब कन्हा थे। ये कैसा सवाल है? अगर मैं अपनी बात करु तो मेरे लिए देश की ज्यादा अहमियत है, मेरे लिए यह मांयने रखता है कि पब्लिक को क्या मिला और पब्लिक ने क्या खोया। मेरा किसी भी पार्टी और किसी भी व्यक्ति विशेष से कोई भी लगाव नही है मेरा केवल इतना मनना है कि पुरानी चीजे जो शुरू से ही गलत रास्ते पर है उसका  परिवर्तन हो। और वो कोई भी सरकार नही कर सकती । कोई भी सरकार कितनी भी नियम बना ले। कुछ भी नही होगा।सरकार रहे या न रहे कोई मतलब नही। हम सही काम करे ये मेरा मानना है। एक दूसरे के हित में काम करे। सभी एक दूसरे के प्रति प्रेम और विश्वास का भाव रखे। हम देश के प्रति अपने कर्तव्य पूर्ण करे। जो गलत है उसे गलत ही कहे गलत का किसी भी प्रकार के दबाव में आकर साथ न दे। जिस दिन ऐसा बदलाव आया तो देश मे सरकार की जरूरत ही न के बराबर होगी। हम एक leader चाहते है जो हमारे हक की बात करे ।कि उसमें ऐसी quality हो तो ऐसी हो...

Aaj ke yuva

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आज के युवा भगत सिंह जो युवाओ के आदर्श है . (सिर्फ खयाली , उनके कर्मों ओर जीवन से बहुत कम लोगों का सरोकार दिखता है.) भगत सिंह के एक लेख "युवा" से- युवा अवस्था मानव जीवन का वसंत काल है। उसे पाकर मनुष्य मतवाला हो जाता है। हजारो बोतल का नशा छा जाता है। विधाता की दी हुए सारी शक्तियाँ एक साथ मिलकर फुट पड़ती है। लेख के अनुसार एक युवा के पास खुद के कुछ नियम , कुछ आदर्श , और सबसे बड़ी बात एक स्वतंत्र नजरिया होना चाइए। यंहा स्वतन्त्रता का मतलब है-  अपने कर्मो के द्वारा दूसरे की स्वतंत्रता को बाधित ना होने देना । वर्तमान समय मे युवा पीढ़ी भगत सिंह को अपना आदर्श तो समझता है लेकिन उनके जैसी कुर्बानी की बात सोचना भी युवा के लिए नामुमकिन हैं। क्यों कि ये सामाजिक आज़ादी , भरस्टाचार, गरीबी , लाचारी, सामाजिक कुरूतियों जैसे बहुत से समस्याओं से निजाद चाहते हैं, पर इनके पास ना समय हैं और ना ही किसी प्रकार की कोई प्रेरणा। ये सिर्फ आदर्शवादी बाते कर के अपने मन को हल्का कर लेते हैं। समाज मे जाकर कार्य करने की बात तो दूर , हम अपने जीवन मे भी किसी प्रकार की स्वतंत्रता को स्थान नही देते है।किसी भ...

Ek aawaj

💐🇮🇳💐जय भारत💐🇮🇳💐🙏🙏🙏साथियों🙏🙏🙏💐🇮🇳💐       "ये मेंहदी...ये चूड़ियाँ"   --------------------------------------- सखियों,समाज हमें...निराधार... खोखली...दमघोंटू...दमतोड़ती परंपराओं के नाम पर ...हम नारियों को अनगिनत बंधनों में बाँध दिया  .... उन बंधनों में मेंहदी व चूड़ियाँ भी है । समाज के ठेकेदारों ने अपना व्यापार चलाने की ख़ातिर हम नारियों को  मेंहदी व चूड़ियों में उलझा दिया...और हम नारियाँ भी अपनें हाथों की कोमलता तथा मेंहदी व चूड़ियों से हाथों के श्रृंगार में लग गयें...और कोमलता की उहापोह में धीरे-धीरे भूलते गये...हाथों की कर्मठता को...अपनी बाज़ुओं की ताक़त को...निरीह ....लाचार बनकर अपनी स्वयं की शक्ति ही भूला बैठे...अपना रक्षक स्वयं को माननें के बजाय ...किसी और को मान बैठे...और फिर क्या...दोहन शुरू...आपकी मेंहदी व चूड़ियां मूक -बधिर ही बनी रहीं.. रक्षा ही नही कर पायीं किसी का.. .। सखियों,अब वक़्त आ गया है...इन मेंहदी व चूड़ियों को तिलांजलि देनें का...उन्हें दरकिनार करनें का ....और अगर आपको श्रृंगार करना ही है तो,मानवीय गुणों से स्वयं का श्रृंगा...

Dowry. Why?

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💐🇮🇳💐जय भारत💐🇮🇳💐🙏🙏🙏साथियों🙏🙏🙏💐🇮🇳💐            " दहेज़ क्यूँ."..??? -------------------------------------------       (बेटा, तू भिखारी है...              ...... या....               आतंकवादी...) माफ़ कीजियेगा...आज जो कटाक्ष करने हम जा रहें हैं...उससे आप सभी को अपने स्तर का पता चल जाएगा...कि आप सबमें समाज का बेहतरी करनें का दम है...या फिर समाज का दमन करने  की मानसिक बीमारी...। बीमार हो चुके हैं आप सभी...इसीलिये आपकी बिमारी से आप सबको अवगत कराने आयी हूँ  । वक़्त रहते चेत जाईये...इलाज़ मुहैया कर लीजिए...अन्यथा सम्पूर्ण मानवजाति का विनाश तो निश्चित है...वो भी आपके स्वयं के अपनें हाथों...। दहेज़ के वास्ते सभी ज़िम्मेदार हैं...कोई लेकर ज़िम्मेदार है ;तो कोई देकर ज़िम्मेदार है...परन्तु हर हाल में बेटियों पर ही करते वार हैं । पूछती हूँ मैं...क्या हर एक बेटे व बेटे के घर वाले नपुंसक हो गए हैं...जो बेटियों के घर वालों से खुद के बेटे का मोलभाव लगानें लग ...

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